"झनकईया मेला" खटीमा। के सुरई रेंज मे नेपाल सीमा के समीप झनकईया शारदा नदी पर लगने वाला मेला , जो हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन से लगता है जो जो 5 दिनों तक चलता है . इस दिन यहाँ श्रद्धालु बड़ी संख्या में स्नान के लिए दूर दूर से आते है। पहले इस मेले का अपना महत्व था। झनकईया का गंगा स्नान मेला धान की फसल बाजार में आने के बाद लगता था। इस मेले में पूर्व में लोग दो-दो दिन तक रहा करते थे। नाते रिश्तेदारों का मेले में मिलन होता था लोग खाना बनाने से लेकर सोने की व्यवस्था साथ लेकर चलते थे। यह मेला युवक-युवतियों के परिचय और रिश्तों को लेकर भी थरुवाट (खटीमा क्षेत्र) में प्रसिद्ध रहा है। यहां लड़का-लड़की एक दूसरे को पसंद करते थे और पूस, माघ (जनवरी१५ से फरवरी१५ तक )में विवाह संपन्न करा दिया जाता था।
इस बार गंगा स्नान मेला थरुवाट के बदले हुए रूप को भी दर्शाता है ।अब यह मेला सिर्फ थारू लोगो का ही नहीं रहा यह अब नेपालियों ( जो सीमा पार से भी इस मेले को देखने पहुचते है ) और कुमाऊ के लोगो का भी मेला हो गया है (चम्पावत और पिथोरागढ़ के लोग जो वहा से पलायन कर अब खटीमा में रहने लगे है) . मेले में आधुनिकता के रंग में रंगे थारु जनजाति के युवक एवं युवतियों को देखकर लगा कि अब थरुवाट (खटीमा क्षेत्र) बदल रहा है।
ब्रांडेड कपडे जींस, टाप,बलेज़ेर , लोवेस्ट पेंट, नई स्टाइल के हेयरकट, नोकिया, समसंग, सोनी के महंगे मोबाइल, महंगी बाइक, कार. शुद्ध हिंदी और हिंदी-अंग्रेजी बोलते युवा कुछ सालो में हुए बदलाव की कहानी बयां कर रहे हैं। इस बार का मेला 29 नवम्बर ( बुधवार) से शारदा नदी पर लगा, पूरी तरह बदला हुआ दिखा।यहाँ पर मनोरजन के लिए आधुनिक प्रकार के झूले लगे हुए थे ।खान पान के लिए भी यहाँ पर पूरी वय्वस्ता थी , खाध्य सामग्रिय में चाट - समोसे के ठेले देखने को मिले , वही सिगाड़े और मुगफली भी बिकती हुई दिखी।
कुछ भी हो यहाँ मेला कमेटी की तरफ से उम्दा वय्वस्ता की गयी थी।
यहां पहले जैसे बैलगाड़ियों में एक-दो दिन रहने के इंतजाम से आने वाले परिवारों के बजाय कारों, मोटर साईकिलो , ट्रैक्टर-ट्रालियों एवं चार पहिया वाहनों से लोग पहुंचे थे। पर अब भी कुछ लोग बैलगाड़ियों में आते दिखे पर वह भी रहने के इंतजाम से नहीं आये थे . वहीं, आधुनिक रंग में रंगे युवा अपनी मस्ती में दिखाई दिए, जबकि युवाओं की अपेक्षा बड़े बुढो की संख्या मेले में कम नजर आयी।
प्रशासन की तरफ से सुरक्षा में कोई ढिलाई नहीं दिख रही थी पार्किग की वय्वस्ता नहर से पहले ही की गयी थी।
यहाँ पर खास और आम का नज़ारा देखने को मिला , सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस ने खास और आम के लिए अलग-अलग व्यवस्था की थी। मेलाघाट जाने वाले ग्रामीणों के लिए भी दूसरे रास्ते की व्यवस्था की गई थी, लेकिन खास लोगों को बाइक से मेला क्षेत्र में जाने की पूरी छूट थी।
चित्रों के माध्यम से आपको कुछ और बताता, पर कैमरे के अभाव में मेले का सुन्दर दर्शय आपको नहीं दिखा पाया । फिर भी आपको पिछले साल की ली हुई फोटो दिखा रहा हु जो मैंने झूले में बैठ के खीची थी।
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